खुशियां
जीवन की आपाधापी में शायद,
खुशियां बटोरना भूल गए
किसी को अपना बना कर, और
किसी के हो कर भी देखा
किसी के हाथों इस्तेमाल हो कर, और
किसी को खुद इजाज़त दे कर भी
कभी किसी का साथ पा कर, और
कभी किसी को साथ दे कर भी देखा
अपनों का साथ पा कर, और
गैरों के पीछे भाग कर भी देखा
सब कुछ किया,
बहुत कुछ मिला भी
खुशियां भी,
शायद?
खुशियां बटोरना भूल गए
किसी को अपना बना कर, और
किसी के हो कर भी देखा
किसी के हाथों इस्तेमाल हो कर, और
किसी को खुद इजाज़त दे कर भी
कभी किसी का साथ पा कर, और
कभी किसी को साथ दे कर भी देखा
अपनों का साथ पा कर, और
गैरों के पीछे भाग कर भी देखा
सब कुछ किया,
बहुत कुछ मिला भी
खुशियां भी,
शायद?
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