द्वंद
तेरा वादा था भरोसा किसी का
वादा कर, न निभाना, थी फितरत उसकी
उसके हर वादे का भरोसा करना, थी हमारी
कहीं तो किसी के अहम की बात थी
कहीं किसी के आत्मसम्मान की
एक अजीब द्वंद था दोनों में
लो, हो गया फैसला हमारी किस्मत का
न वो आगे बढे
न हमें ही कुछ समझा
और एक बार फिर अहम् ने मार ली बाज़ी
आत्मसम्मान, एक बार फ़िर,
बेबस, लाचार खड़ा रहा
वादा कर, न निभाना, थी फितरत उसकी
उसके हर वादे का भरोसा करना, थी हमारी
कहीं तो किसी के अहम की बात थी
कहीं किसी के आत्मसम्मान की
एक अजीब द्वंद था दोनों में
लो, हो गया फैसला हमारी किस्मत का
न वो आगे बढे
न हमें ही कुछ समझा
और एक बार फिर अहम् ने मार ली बाज़ी
आत्मसम्मान, एक बार फ़िर,
बेबस, लाचार खड़ा रहा
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